वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 7 मई मंगलवार को होगी। अश्विनी नक्षत्र का संयोग होने से यह अमृत सिद्धि योग कहलाता है। पितरों को तृप्त करने या पितरों की पूजन करने के लिए यह अमावस्या विशेष है। मंगलवार के दिन पूरे दिन अमावस्या रहेगी। दूसरे भाग में अमावस्या बुधवार को सुबह 8:30 के बीच रहेगी। इसके बाद प्रतिपदा लग जाएगी। उदय काल या मध्यान्ह काल में पितृ कर्म से संबंधित तिथि विशेष मानी जाती है। इस दृष्टि से पितृ कर्म के लिए मंगलवार की अमावस्या श्रेष्ठ है।
इस दिन तीर्थ पर जाकर अपने पितरों के निमित्त देव ऋषि, पितृ, दिव्य मनुष्य तर्पण विधान के साथ तीर्थ श्राद्ध, नारायण बलि कर्म, पितृ शांति की विधि करने पर पितरों की कृपा प्राप्त होती है। पं. अमर डिब्बेवाला ने बताया कि पंचांग के गणित की मान्यता और वार, तिथि, योग, नक्षत्र के गणित की दृष्टि से स्थानीय रेखांश के आधार पर पंचांगों के निर्माण की स्थिति में भी परिवर्तन आ जाता है। कभी-कभी एक तिथि दो दिन तक बनी रहती है या एक तिथि मध्यान्ह में लगती है और उदय काल के एक घटि या दो घटि अथवा एक या दो मुहूर्त तक रहती है। इस बार अमावस्या दो भागों में विभाजित है। हालांकि जो लोग मंगलवार की अमावस्या नही कर सकते है वे बुधवार को प्रात: पितरों के निमित्त पूजन पाठ कर सकते है। शास्त्रीय अभिमत में यह स्नान दान की अमावस्या का भाग रहता है। इस दिन स्नान करके यथा श्रद्धा दान करने से अनुकूलता प्राप्त होती है।
बुधवार को दोपहर में होगा गुरु तारा अस्त
पंचांग की गणना के अनुसार गुरु व शुक्र के तारे की मान्यता विशेष रहती है। पितृ कर्म हो या विशेष कोई कार्य हो 8 मई को बुधवार के दिन गुरु का तारा दोपहर में अस्त हो जाएगा। गुरु के तारा अस्त होने के बाद कई विशिष्ट कार्य भी आगे बढ़ जाते है। शुक्र का तारा पहले ही अस्त हो चुका है। ग्रह गोचर में जब गुरु और शुक्र का तारे अस्त तो हो तो विशिष्ट पितृ कर्म नही किया जा सकता।
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